Gidhaur News: जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर स्थित एक ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर है, जिसे राजा जयमंगल सिंह ने 405 वर्ष पूर्व स्थापित किया था। यह मंदिर शक्ति पीठ के रूप में शास्त्रों में वर्णित है और इसकी दुर्गा पूजा सदियों से चर्चा का विषय रही है। यहां आयोजित दुर्गा पूजा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
मंदिर में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा को प्राचीन काल में लाखों रुपए की लागत से निर्मित जेवरात से सजाया जाता है। पूजा की अलौकिक परंपरा और पौराणिक विधान का संगम आज भी यहां देखा जा सकता है। स्थानीय कहावत है, ष्काली है कलकत्ते की, दुर्गा है परसंडे की,ष् जो मां दुर्गा की प्रतिमा की भव्यता को दर्शाती है।
मंदिर के समीप स्थित प्राचीन गिद्धौर रियासत का किला 22 शासकों के शासनकाल का गवाह है। लॉर्ड मिंटो टॉवर भी यहां की एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो प्राचीन काल में लोगों को समय की सही जानकारी देता था।
दुर्गा पूजा के दौरान यहां बलि दी जाती है, और दशहरा के मेले में मल्लयुद्ध, तीरंदाजी, कवि सम्मेलन और नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन होता था। माना जाता है कि गिद्धौर के महाराज इस अवसर पर आम जनता के बीच उपस्थित होते थे। इस मेले में ब्रिटिश अधिकारियों का भी शामिल होना एक विशेषता थी।
प्रधान पुजारी उत्तम झा के अनुसार, मां दुर्गा की दशहरा पूजा सूबे भर में प्रसिद्ध है। मंदिर में तांत्रिक विधि से पूजा संपन्न कराई जाती है, जिसके लिए झारखंड और पश्चिम बंगाल के विद्वान पंडितों को आमंत्रित किया जाता है। नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा समिति के सदस्य दिन-रात पूजा की तैयारी में लगे रहते हैं, ताकि श्रद्धालुओं को कोई कठिनाई न हो।
For Latest Gidhaur News Click Here
Chief Editor, Aaj Khabar