Shimla News: यहां मिले 40,000 साल पुरानी मानव सभ्यता के अवशेष

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Shimla News: हिमाचल प्रदेश की घाटियों में पाषाणकालीन मानव सभ्यता के जीवित रहने के महत्वपूर्ण प्रमाण मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग 40,000 साल पहले भी मानव जीवन मौजूद था। यह अवशेष न केवल राज्य के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी साबित करते हैं कि प्राचीन हिमाचलवासियों का जीवन सभ्यता और कौशल से परिपूर्ण था।

राज्य संग्रहालय के अध्यक्ष, हरि चैहान, ने हाल ही में आयोजित कार्यशाला में पाषाणकालीन उपकरणों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति, कांगड़ा की बाण गंगा घाटी, ब्यास घाटी, नालागढ़ की शिवालिक घाटी, बिलासपुर की सिरसा सतलुज घाटी और सिरमौर की मारकंडा घाटी जैसे क्षेत्रों में पाषाण काल के औजारों के अवशेष मिले हैं। इन क्षेत्रों में मिले औजारों का अध्ययन अभी भी जारी है, और यह संग्रहालय में संरक्षित हैं।

हिमाचल प्रदेश में पाषाण काल के औजारों का उपयोग मुख्य रूप से मांस काटने, जानवरों की खाल निकालने, जमीन खोदने, और पौधों की जड़ें निकालने में किया जाता था। इन औजारों में कुल्हाड़ी, कुदाली, चॉपर, और अन्य आकार के औजार शामिल थे, जो आज के पाषाणकालीन औजारों के समान थे। सबसे अधिक औजार लाहौल-स्पीति के ऊपरी इलाकों में पाए गए हैं, जहां 2017 से इनकी खोज शुरू की गई थी। यह खोज अभी भी जारी है और इन औजारों के निर्माण में मुख्य रूप से क्वार्टजाइट चट्टान का उपयोग किया गया था, जो प्राचीन पर्वतीय गतिविधियों के दौरान उत्पन्न हुआ था।

पुरातत्वविदों के मुताबिक, हिमाचल में पाषाण काल लगभग तीन लाख से 40,000 साल पहले तक फैला हुआ था। इसके बाद मध्य पाषाण काल और फिर नव पाषाण काल की अवधि आई। इस शोध से यह सिद्ध होता है कि इस काल में हिमाचल में मानव सभ्यता सक्रिय थी। राज्य संग्रहालय में इन सभी कालों से संबंधित औजारों का संग्रह मौजूद है, जो मानव इतिहास की प्राचीनता और विकास को दर्शाते हैं।

पाषाणकाल में केवल पत्थर से बने औजार नहीं, बल्कि हड्डियों से बने औजार भी उपयोग में लाए जाते थे। कुछ क्षेत्रों से हड्डियों से बने औजारों के अवशेष भी मिले हैं। इन औजारों का उपयोग शिकार और भोजन तैयार करने में किया जाता था। जानवरों के शिकार के बाद उनकी हड्डियों का उपयोग औजारों के रूप में किया जाता था, जो प्राचीन मानव जीवन की कुशलता को दर्शाता है।

इस कार्यशाला में मुख्य विशेषज्ञ के रूप में डॉ. रिजा अब्बास ने भाग लिया, जो एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद और इंडियन न्यूमिस्मेटिक्स हिस्टोरिक एंड कल्चरल रिसर्च फाउंडेशन, नासिक के निदेशक हैं। डॉ. अब्बास ने प्रतिभागियों को पाषाणकालीन औजारों और उनकी तकनीक से अवगत कराया और इस क्षेत्र में अपने 25 वर्षों के अनुभव का लाभ साझा किया।

 

 

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