New Delhi News: जन्मतिथि का निर्णायक सबूत नहीं है आधार

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New Delhi News: सुप्रीम कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण मामलों में अहम फैसले सुनाए हैं, जिनमें एक मोटर दुर्घटना मुआवजे के निर्धारण से संबंधित है और दूसरा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को समान पेंशन और सेवा लाभ देने से जुड़ा है।

 

मोटर दुर्घटना मुआवजा और आधार कार्ड पर अहम फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना मुआवजा मामले में आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को निर्णायक मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि मृतक की आयु का निर्धारण स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र (टीसी) में दर्ज जन्म तिथि से किया जा सकता है, न कि आधार कार्ड से।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि टीसी में अंकित जन्मतिथि को किशोर न्याय कानून की धारा 94 के तहत वैधानिक मान्यता प्राप्त है। वहीं, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने 2023 में एक परिपत्र जारी किया था जिसमें कहा गया था कि श्आधारश् का उपयोग केवल एक पहचान पत्र के रूप में किया जा सकता है, लेकिन यह जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य नहीं है।

अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें मुआवजे की गणना के लिए आधार कार्ड में दर्ज जन्म तिथि का उपयोग किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला करते हुए कहा कि मुआवजा तय करते समय मृतक की जन्म तिथि का सही और विधिक प्रमाण पत्र ही सही आधार होना चाहिए।

हाईकोर्ट जजों के पेंशन और सेवा लाभ में भेदभाव पर फैसला: एक अन्य महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को बिना किसी भेदभाव के एक समान पेंशन और अन्य सेवा लाभ मिलेंगे। यह फैसला पटना हाईकोर्ट के एक जज की याचिका और अन्य संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि सेवा और बार कोटा से आने वाले जजों को पेंशन और अन्य सेवा लाभों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 216 के तहत यह बात स्पष्ट है कि उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति के तरीके में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। एक बार जज नियुक्त होने के बाद सभी जज समान रैंक के होते हैं और उनकी पेंशन, वेतन या अन्य लाभों में भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वतंत्रता के बीच एक अंतर्निहित संबंध होता है, और न्यायाधीशों के सेवा लाभों और पेंशन में भेद करना असंवैधानिक होगा। अदालत ने यह भी कहा कि यह एक संवैधानिक सिद्धांत है कि सभी जजों को समान पेंशन और सेवा लाभ मिलना चाहिए, चाहे उनकी नियुक्ति किस आधार पर क्यों न हुई हो।

इन दोनों फैसलों से सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संवैधानिक सिद्धांतों और कानूनी प्रावधानों का पालन करना सर्वाेच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। मोटर दुर्घटना मुआवजा मामलों में आधार कार्ड से जन्म तिथि को निर्णायक मानने से इंकार कर दिया गया है, जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए समान सेवा लाभों और पेंशन के आदेश से न्यायपालिका में समानता सुनिश्चित करने का संदेश दिया गया है।

 

 

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