Uttarakhand,चंपावत: रक्षाबंधन के अवसर पर हर साल की तरह इस बार भी चंपावत जिले के देवीधुरा स्थित मां वाराही देवी मंदिर परिसर में बग्वाल मेले का भव्य आयोजन हुआ। इस ऐतिहासिक मेले में इस वर्ष 50,000 से अधिक लोग शामिल हुए और बग्वाल मेले का साक्षी बने। चारों खामों के रणबांकुरों ने 11 मिनट तक फूल, फल और पत्थरों से युद्ध किया।
इस विशेष अवसर पर Uttarakhand के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मां वाराही धाम पहुंचकर पूजा-अर्चना की और देवीधुरा बग्वाल मेले का भी साक्षात्कार किया। रक्षाबंधन के दिन मां वाराही मंदिर में बग्वाल खेलने की पुरानी परंपरा है। पहले यहां नर बलि दी जाती थी, जो समय के साथ पत्थर युद्ध में परिवर्तित हो गई। हालांकि, 2013 में न्यायालय के आदेश के बाद अब पत्थरों की जगह फूल और फलों से बग्वाल खेली जाती है।
बग्वाल खेलने वाले वीरों का मानना है कि वे आसमान में फलों को फेंकते हैं, जो पत्थरों में तब्दील हो जाते हैं। इस बग्वाल में एक व्यक्ति के शरीर के बराबर खून बहाने की परंपरा है।
गुरुवार को पाटी विकासखंड के देवीधुरा स्थित मां वाराही धाम के खोलीखाण दुबाचौड़ मैदान में सुबह के समय प्रधान पुजारी ने पूजा-अर्चना की। इसके बाद दोपहर 12:40 बजे से चारों खामों और 7 थोक के बग्वालियों का आगमन हुआ। सबसे पहले सफेद पगड़ी में वालिक खाम ने मंदिर में प्रवेश किया, इसके बाद गुलाबी पगड़ी पहने चम्याल खाम, फिर गहड़वाल खाम, और अंत में पीली पगड़ी पहने लमगढ़िया खाम ने मंदिर में प्रवेश किया।
सभी खामों के प्रवेश के बाद प्रधान पुजारी ने मंदिर से शंखनाद किया, जिसके बाद 2:05 बजे बग्वाल शुरू हुई। मां के जयकारों से पूरा खोलीखाण दुबाचौड़ मैदान गूंज उठा। पीठाचार्य पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी ने बताया कि इस बार करीब 10 क्विंटल फलों से युद्ध खेला गया, जिसमें लगभग 150 रणबांकुरे मामूली रूप से घायल हुए, जिनका उपचार कर घर भेज दिया गया।
यह मेला न केवल बग्वाल खेलने वालों के लिए बल्कि इसे देखने वालों के लिए भी फलदायी माना जाता है।
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