Dehradun News: राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने सभी राज्य के मुख्य सचिवों को एक पत्र भेजकर मदरसा बोर्ड भंग करने की सिफारिश की है। यह पत्र आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने 10 अक्टूबर को जारी किया था, जिसमें मदरसों की मान्यता और वित्त पोषण पर चिंता व्यक्त की गई है।
पत्र में कहा गया है कि केवल मदरसा बोर्ड का गठन करना या यूडीआईएसई कोड लेना यह नहीं दर्शाता कि मदरसे आरटीई अधिनियम, 2009 के प्रावधानों का पालन कर रहे हैं। इसलिए, आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मदरसों के वित्त पोषण को रोकने और मदरसा बोर्डों को भंग करने की सिफारिश की है।
आयोग ने यह भी कहा कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर उचित शिक्षा के लिए स्कूलों में भर्ती कराया जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय के बच्चों के लिए भी औपचारिक स्कूलों में दाखिले की सिफारिश की गई है।
इस पत्र के बाद, उत्तराखंड बाल संरक्षण आयोग भी सक्रिय हो गया है। आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने बताया कि 22 अक्टूबर को शिक्षा विभाग के साथ मदरसा बोर्ड के विषय पर बैठक की जाएगी। उन्होंने कहा कि अवैध मदरसों के संचालन की जांच के दौरान पता चला था कि अधिकांश मदरसे रजिस्टर्ड नहीं थे।
डॉ. खन्ना ने कहा, ष्राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग का पत्र इस बात का सबूत है कि मदरसों की जरूरत नहीं है।ष् वह इस पत्र के संदर्भ में मुख्य सचिव को लिखने का भी इरादा रखती हैं।
वहीं, उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून काजमी ने कहा कि राज्य में केवल एक मदरसा, रुड़की का रहमानिया मदरसा है, जिसे सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। उन्होंने यह भी कहा कि मदरसों में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों का उपयोग किया जा रहा है और बोर्ड के भंग होने की संभावना नहीं है।
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Chief Editor, Aaj Khabar