New Delhi News: 7 अक्टूबर 1996 को दक्षिणी मुंबई के मस्जिद बंदर क्षेत्र में एक घटना ने भारतीय पुलिस और न्यायिक प्रणाली को चुनौती दी। उस शाम, पुलिस के दो जवान गश्त पर थे, तभी उन्होंने दो संदिग्धों को देखा। इनमें से एक व्यक्ति की पैंट खून से लथपथ थी। तलाशी के दौरान, उसके पास एक विदेशी रिवॉल्वर और कारतूस मिले।
पुलिस ने उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया, जहां बाद में पता चला कि ये दोनों व्यक्ति फायरिंग में घायल हुए थे। घटनास्थल पर फायरिंग की सूचना मिली थी, जिसमें मोहम्मद अली रोड पर सैय्यद फरीद मकबूल हुसैन को गोली मारी गई थी। उनके भाई सोहेल ने गोली चलने की आवाज सुनी और मौके पर भागे, जहां उन्होंने दो संदिग्धों को भागते हुए देखा। फरीद को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन दो दिन बाद उनकी मौत हो गई।
पुलिस ने गश्त कर रहे जवानों द्वारा पकड़े गए संदिग्धों, गैंगस्टर एजाज लकड़वाला और राजेंद्र पारकर को फायरिंग का आरोपी बनाया। मामले की जांच में, पुलिस ने वांटेड गैंगस्टर राजन निकलजे उर्फ छोटा राजन का नाम भी शामिल किया। 1998 में एजाज फरार हो गया, जबकि राजेंद्र को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
2015 में, छोटा राजन को बाली से प्रत्यर्पित किया गया और गिरफ्तार किया गया। 2020 में, एजाज लकड़वाला की भी गिरफ्तारी हुई, और 2021 में मामले की सुनवाई शुरू हुई। चश्मदीद गवाहों की कमी और पुरानी गवाही के कारण मामला जटिल हो गया। फरीद के भाई की 1998 में मौत ने मामले को और कठिन बना दिया।
हालांकि, पुलिसवालों की गवाही और बैलिस्टिक सबूतों के आधार पर, अदालत ने 28 साल बाद 7 मार्च 2024 को एजाज लकड़वाला को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। विशेष सरकारी वकील प्रदीप घरात ने कहा कि बैलिस्टिक सबूत इस मामले में निर्णायक साबित हुए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि लकड़वाला का रिवॉल्वर मृतक की हत्या से जुड़ा था।
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Chief Editor, Aaj Khabar