हिंसक जानवर को मारने को चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति होनी जरूरी: हाईकोर्ट

हिंसक जानवर को मारने को चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति होनी जरूरी: हाईकोर्ट
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नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल जिले के भीमताल ब्लाक में आदमखोर बाघ या गुलदार ने तीन लोगों को अपना निवाला बनाने पर उन्हें वन विभाग द्वारा उनको बिना चिन्हित किए सीधे मारने की अनुमति दिए जाने के मामले में स्वतरू संज्ञान लेकर गुरुवार को सुनवाई की। सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए निर्देश दिए कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा-11ए का पालन किया जाए। कहा कि धारा -11ए के अनुसार मारने से पहले आदमखोर को चिन्हित किया जाये तथा उसे पकड़ा जाय बाद में उसे ट्रेंक्यूलाइज किया जाय। इसके बाद भी वह पकड़ में नहीं आता है तो उसे मारने की चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई जानवर इंसान पर जानलेवा हमला करता है तो अपनी आत्मरक्षा के लिए उसे मार सकता है। अगर घटना घट चुकी है तो उस स्थिति में उस जानवर को चिन्हित किया जाना आवश्यक है जिससे निर्दाेष जानवरों न मारे जायँ। इस मामले में भी कोर्ट के आदेश पर ही आदमखोर चिन्हित किया गया नहीं तो पिजरें में गुलदार भी फंसा था। सरकार की तरफ से कहा गया कि आदमखोर बाघिन थी उसको ट्रेंक्यूलाइज कर लिया है। जिसकी फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट नहीं आई है। मामले के मुताबिक भीमताल ब्लाक में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के आदेश का स्वतरू संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सुनवाई थी । खंडपीठ ने कोर्ट ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली तो वह ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके। उन्होंने कहा कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13 ए में खूंखार हमलावर जानवर को मारने की अनुमति दी जाती है । उन्होंने इसे पकडऩे के व पहचान करने के लिए 5 पिजरे व 36 कैमरे लगा रखे हैं, जिस पर न्यायालय ने उनसे पूछा कि गुलदार था या बाघ था उसे मारने के बजाए रैस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए। न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है नाकि किसी नेता के आंदोलन की। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11 ए के तहत तीन परीस्थितियों में किसी

जानवर को मार सकते हैं। उसे पहले उस क्षेत्र से खदेड़ा जाएगा फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रैस्क्यू सेंटर में रखा जाएगा और अंत में मारने जैसा अंतिम कठोर कदम उठाया जा सकता लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए। उन्हें यही पता नही कि बाघ है या गुलद्वार। उसकी पहचान भी नही हुई। न्यायालय ने यह भी कहा था कि घर का बच्चा अगर बिगड़ जाता है तो उसे सीधे मार थोड़े दिया जाता है। क्षेत्र वासियों के आंदोलन के बाद मारने के आदेश कैसे दे दिए किसने मारा आपको कोई पता नहीं?

हिंसक जानवर को मारने को चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति होनी जरूरी: हाईकोर्ट

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