हल्द्वानी। आज मकर संक्रांति है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में आने पर मनाया जाता है। दक्षिणायन समाप्त हो गया और अब 6 महीनों तक सूर्य उत्तरायण में रहेंगे, यानि ठंड कम होने लगेगी और धीरे-धीरे गर्मी बढ़ेगी। दिन बड़े और रात छोटी होती चली जाएगी। शास्त्रों में लिखा गया है कि मकर संक्रांति से देवताओं के दिन की शुरुआत होती है।
यह अकेला ऐसा पर्व है जो सूर्य की स्थिति के आधार पर मनाया जाता है। बाकी सारे पर्व चंद्र की स्थिति के आधार पर मनाए जाते हैं। इस दिन सूर्य पूजा के साथ ही तिल, कंबल, मच्छरदानी, खिचड़ी, गुड़ का दान करने की परंपरा है। पूरे दिन दान-पुण्य, पूजा-पाठ और तीर्थ दर्शन कर सकते हैं। मकर संक्रांति को लेकर कई मानरूतातें हैं जिनके बारे में आपको भी जानना चाहिए। सूर्य देश जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। सनानत धर्म में मान्यता है कि सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं। शनि अपने पिता सूर्य को शत्रु मानता है, लेकिन एक मान्यता ये है कि मकर संक्रांति पर सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनेके घर आते हैं। मान्यता के अनुसार जब पहली बार सूर्य शनि के घर गए थे, तब इनके बीच के मतभेद दूर हो गए थे। वहीं दूसरी मान्यता यह है कि राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष नहीं मिला था। पूर्वजों के मोक्ष के लिए देवी गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना था। देवी गंगा को धरती पर लाने का काम राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से किया। देवी गंगा धरती पर आईं तो मकर संक्रांति के दिन ही भागीरथ के पूर्वजों की अस्थियों से गंगा जल स्पर्श हुआ था और सभी पूर्वजों को मोक्ष मिल गया था। इस मान्यता की वजह से मकर संक्रांति पर गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। तीसरी मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में इसे देवताओं के दिन की शुरुआत माना जाता है। महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे। उस समय माना जाता था कि मकर संक्रांति पर मरने वाले लोगों को मोक्ष मिल जाता है। मोक्ष यानी मरने के बाद आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता है। चौथी मान्यता यह है कि सूर्य के मकर राशि में आने से खरमास खत्म हो जाता है और मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त शुरू हो जाते हैं।
Chief Editor, Aaj Khabar