छह माह के लिए प्रशासकों के हवाले किए जा सकते हैं निकाय, चुनावों का आगे खिसकना तय।

छह माह के लिए प्रशासकों के हवाले किए जा सकते हैं निकाय, चुनावों का आगे खिसकना तय।
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देहरादून। उत्तराखंड में नगर निकाय चुनावों का आगे खिसकना तय माना जा रहा है क्योंकि शहरी विकास विभाग अब तक निकायों के परिसीमन को ही अंतिम रूप दे पाया है। न मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण हो पाया है और न ही ओबीसी सर्वेक्षण का काम। ऐसे में छह महीने के लिए निकायों को प्रशासकों के हवाले किया जा सकता है। मतदाता सूची तैयार करने में ही कम से कम तीन माह का समय लग जाता है। जब तक मतदाता सूची तैयार होगी, तब तक लोकसभा चुनाव का भी बिगुल बज जाएगा। 2018 में निकायों की पहली बैठक दो दिसंबर को हुई थी। उत्तराखंड में नगर निकायों का कार्यकाल दो दिसंबर को समाप्त हो रहा है। यहां पर बता दें कि निकाय अधिनियम के अनुसार जब निकाय की पहली बैठक होती है तभी निकाय का पांच साल का कार्यकाल शुरू माना जाता है। पिछली बार निकाय चुनाव 2018 में हुए थे। 18 नवंबर को मतदान हुए और 20 नवंबर को परिणामों की घोषणा हुई थी। अब जबकि निकायों का कार्यकाल समाप्ति की ओर है, ऐसे में चुनावी कसरत भी शुरू हो गई है। लेकिन जिस गति से काम चल रहा है, उससे चुनाव टलने के आसार नजर आ रहे हैं। हालांकि इस संबंध में अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं। उत्तराखंड में मौजूदा समय में 110 नगर निकाय हैं। सात निकाय कुछ समय पहले ही अधिसूचित हुए हैं, ऐसे में इन निकायों में चुनाव कराना संभव नहीं है। जबकि तीन निकायों केदारनाथ, बद्रीनाथ और गंगोत्री में चुनाव नहीं होते हैं। वहीं सिरौलीकलां निकाय के गठन को लेकर कोर्ट से स्थगनादेश मिला है। निकायों में ओबीसी वोटरों की वास्तविक संख्या ज्ञात होने के बाद ही आरक्षण का निर्धारण किया जाएगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या मतदाता सूची तैयार करने की है। सूची तैयार करने में ही कम से कम तीन माह का समय लग जाता है। लेकिन जिस तरह से कसरत चल रही है, उससे दिसंबर आखिर या फिर जनवरी के पहले पखवाड़े तक मतदाता सूची के तैयार होने का अनुमान है। इसी दौरान लोकसभा चुनाव का भी बिगुल बज जाएगा। इस स्थिति में निकाय चुनाव आगे खिसकाए जा सकते हैं।

 

 

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