हल्द्वानी। जिस चीड़ को उत्तराखंड में अभिशाप माना जाता है, उन्हीं चीड़ की पत्तियों से महिलाएं नई इबारत लिख रहीं हैं। इससे नए-नए उत्पाद बनाए जा रहे हैं जिनसे उनके हुनर को पहचान तो मिल ही रही है, साथ ही उनकी आर्थिकी भी मजबूत हो रही हैं। आज दर्जनों महिलाएं चीड़ की पत्तियों से जिसे पिरूल कहा जाता है, को रोजगार का जरिया बना दिया है। आज वह पिरूल से बनाए उत्पादों से खुद को सशक्त बन चुकी हैं। इन्हीं हुनरमंदों में एक और नाम शामिल हो गया है। रामगढ़ ब्लाक की ध्वेती गांव में रहने वाली भारती जीना को पिरूल से उत्पाद बनाने का हुनर अपने दादा से विरासत में मिला है। वह पिरूल से टोकरियां, फ्लावर पॉट, सहित कई अन्य आकर्षक उत्पाद बना रही हैं। भारती का कहना है कि पिरूल से उत्पाद बनाने की कला उन्होंने अपने दादा से सीखीं हैं। अपने दादा से सीखे हुनर को उन्होंने आय का जरिया बना दिया। भारती के पिता तेज सिंह किसान और माता कमला जीना आंगनबाड़ी केंद्र में काम करती हैं। वह बताती हैं कि उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद प्रदर्शनी में भी लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन के सहयोग से बाजार मिला तो उनके उत्पादों को पहचान मिलेगी और इन उत्पादों को बाजार मिलने से स्वरोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। भारती जनता हल्द्वानी से संगीत की दीक्षा ले रहीं हैं।
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Chief Editor, Aaj Khabar