वनाग्नि रोकन में मददगार है शीतलाखेत माडल, शासन स्तर पर गंभीरता से लेने की दरकार

    वनाग्नि रोकन में मददगार है शीतलाखेत माडल, शासन स्तर पर गंभीरता से लेने की दरकार
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    अल्मोड़ा। गर्मी के सीजन आते ही जंगलों के आगे की चपेट में आने की घटनाएं आम होती जा रही है। इसके बचाव के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं हो सकी है। इधर जिले के शीतलाखेत में जंगल को बचाने के लिए की गई पहल काफी हद तक कारगर रही है। प्रदेश के सीएम स्तर पर इसको शीतलाखेत माडल नाम दिया गया है लेकिन वन विभाग के स्तर पर इसको गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
    स्याही देवी शीतलाखेत क्षेत्र कोसी नदी के रिचार्ज जोन हैं। यहां सामुदायिक पहल से जंगल में लगने वाली आग पर काफी हद तक अंकुश लगाया गया वहीं इसको हराभरा बना कर जलस्रोतों में पानी की वृद्धि की गई है। यहां लोगों का कहना है कि जंगल में आग के लिए मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं। चीड़ के साथ ही घास या बांज की पत्तियाँ भी आग फैलाने में मददगार होती हैं। क्षेत्र में जंगल बचाने की इस मुहिम में महिला मंगल दल के साथ ही स्थानीय महिला समूह अपनी भूमिका निभाते हैं। सरकार हर गांव स्तर पर इनको आर्थिक सहायता देकर वनों की सुरक्षा में मदद ले सकती है। यहां ओण आड़ा या केड़ा जलाने के लिए एक अप्रैल को ओण दिवस मनाया जाता है। इसको अपना कर जंगलों को आग से बचाया जा सकता है। आग के लिए संवेदनशील स्थलों में जनवरी माह में से कंट्रोल बर्निंग करने का भी सुझाव इस माडल में दिया जाता है। प्रत्येक बीट में एक क्रू स्टेशन बनाने तथा इसमें लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने से भी जंगल में आग की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। वनों में कटान रोकने में वी एल स्याही हल जैसे विकल्प भी प्रदान किए जाने चाहिए। फायर वाचर्स दैनिक श्रमिकों को पर्याप्त सुविधा मुहय्या कराए जाने तथा फायर लाइन की साल भर देख रेख जारी रखने से भी जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं कम हो सकती हैं। स्याही देवी विकास समिति गजेंद्र कुमार पाठक का कहना है कि लगातार जल रहे जंगल पर्यावरण के लिए खतरा बने हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार विशेष कर वन विभाग को शीतलाखेत माडल पर ध्यान देना चाहिए ताकि वनाग्नि की घटनाओं में कमी लाई जा सके।

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