Nainital: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कुमाऊं विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों और संकाय को संबोधित करते हुए 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल बताते हुए कहा कि यह लोकतंत्र को नष्ट करने वाला भूकंप था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रहित से ऊपर रखकर लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलते हुए आपातकाल लागू किया, जो संविधान और न्याय व्यवस्था के लिए गहरा आघात था।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उस कालखंड में देश की सर्वोच्च अदालत की भूमिका धूमिल हो गई और नौ उच्च न्यायालयों के साहसी निर्णयों को पलटते हुए नागरिकों से उनके मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए। उन्होंने कहा कि इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में स्मरण किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा कोई भी कदम दोहराया न जा सके।
शिक्षा और नवाचार पर बल देते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि विश्वविद्यालय केवल प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि विचार और नवाचार के स्वाभाविक प्रयोगस्थल होते हैं। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे परिवर्तन के वाहक बनें और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका को समझें। उन्होंने पूर्व छात्रों के योगदान को महत्वपूर्ण बताते हुए ‘देवभूमि’ से पूर्व छात्र संघ की औपचारिक शुरुआत करने का सुझाव भी दिया।
समारोह में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि पिछले 50 वर्षों में कुमाऊं विश्वविद्यालय ने शिक्षा, नवाचार और सामाजिक चेतना के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों का कर्तव्य केवल शिक्षित करना नहीं, बल्कि युवाओं को उत्तरदायी नागरिक के रूप में तैयार करना भी है। उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे राष्ट्र निर्माण की भावना से छात्रों में मूल्य आधारित शिक्षा का समावेश करें।
समारोह के पूर्व उपराष्ट्रपति ने ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के अंतर्गत अपने माता-पिता के नाम दो पौधे भी रोपे। कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत, स्थानीय विधायक, प्रशासनिक अधिकारी, कुलपति, और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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Chief Editor, Aaj Khabar