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Dehradun: मुख्यमंत्री धामी ने कहा – अहिल्याबाई थीं तीक्ष्ण सोच और जनकल्याण की प्रतीक

Dehradun: मुख्यमंत्री धामी ने कहा – अहिल्याबाई थीं तीक्ष्ण सोच और जनकल्याण की प्रतीक
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Dehradun: पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में शनिवार को देहरादून स्थित मुख्य सेवक सदन में भव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े, प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट, तथा प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार सहित कई गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कार्यक्रम में अहिल्याबाई होल्कर को तीक्ष्ण सोच, स्वप्रेरित नेतृत्व और जनकल्याण की प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि उनके शासनकाल में जनसेवा, न्यायप्रियता और सांस्कृतिक संरक्षण की जो मिसालें कायम हुईं, वे आज भी अनुकरणीय हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि उनकी सरकार भी जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए निर्णय ले रही है, जैसे कि नकल विरोधी कानून, समान नागरिक संहिता, भू-कानून और महिला सशक्तिकरण के लिए कई पहलें।

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े ने महारानी अहिल्याबाई होल्कर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे एक दूरदर्शी शासिका थीं, जिन्होंने अपने सीमित राज्य क्षेत्र में भी मंदिरों, धर्मशालाओं और सामाजिक संरचनाओं का व्यापक निर्माण कराया। उन्होंने बताया कि अहिल्याबाई ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों पर कई धर्मशालाएं बनवाईं।

राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने बताया कि अहिल्याबाई ने उत्तराखंड के बद्रीनाथ, केदारनाथ और गोचर सहित कई धार्मिक स्थलों के विकास में योगदान दिया। उन्होंने इंदौर को एक विकसित शहर के रूप में स्थापित किया और पूरे भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नींव रखी।

भाजपा प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार ने कहा कि इतिहास में बहुत कम महिलाएं हैं जिन्होंने समाज को गहराई से प्रभावित किया हो, और अहिल्याबाई उनमें से एक हैं। उन्होंने शिक्षा, सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए।

इस अवसर पर भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव दीप्ति रावत भारद्वाज, कार्यक्रम संयोजक शैलेन्द्र सिंह बिष्ट ‘गढ़वाली’, विभिन्न क्षेत्रों के समाजसेवी, भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारीगण एवं बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे। संगोष्ठी भारत की सांस्कृतिक विरासत के सम्मान और स्मरण का प्रतीक बनी।

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